गंगा
तू कितनी निर्मल है,तू कितनी पावन है।
अमृत की धारा है,कि पुण्य फल दाता है।
कितनो के माँ पाप धोये,कितनो को तारा है।
तू शीतल धारा है,पालन हारा है माँ गंगे।
मुक्ति जन को देती है,पिण्ड को स्वीकारती।
है प्रताप धार माँ,उतारूँ तेरी आरती।
तट पर तपस्वी का वास है,सुधारते योनि को।
त्रिवेणी का संगम जहाँ रोज तरते सारथी।
शिव की जटा में विराजती,वेग प्रबल चाल है।
कितने खेतों को सींचती,कितनों को तारती।
भागीरथ के तप से ,भागीरथी कहाती है।
जय जय गंगे,जय हो माँ गंगा।
गंतव्य की ओर बढ़ रही,गोमुख से उदगम तेरा।
हे पुण्य निर्मल माँ,धरा को पुण्य आशीष दे।
जय जय जय माँ गंगा,बहुत पुण्य फलदायिनी।
-----अनिता शर्मा झाँसी
------स्वरचित/मौलिक रचना
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com