एक औरत की जिंदगी पर आधारित कविता
कविता-एक औरत हो तुम
महकती हो तुमबहकती हो तुम
दहकती हो तुम
सिसकती हो तुम ।
एक औरत हो तुम
तुममें हर खूबियां
भूलकर सारे सुख
सारी मजबूरियां ।
घर बनाती हो तुम
चहचहाती हो तुम
गुनगुनाती हो तुम
मुस्कुराती हो तुम !
तुम न हो तो
घर में हो सुनसानपन,
न जलें फिर दीये
न लगे सबका मन !
मां न हो तो
न बेटा, पिता खुश रहें
घर मे हर सुख ,पर
किससे हम बेटी कहें।
घर का ऐनक हो तुम
घर की रौनक हो तुम,
घर का सावन हो तुम
घर का फाल्गुन हो तुम !
बस तुम्हीं सार हो
घर का आधार हो,
कुल की शौहरत हो तुम
एक औरत हो तुम !
लेखक राजेश शुक्ला सोहागपुर
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