chal chod ye aadat hai koi khta nhi by shashi suman up

 शीर्षक
चल छोड़, ये आदत है, कोई खता नहीं l

chal chod ye aadat hai koi khta nhi by shashi suman up


तेरे फ़िक्र में हैं हम और तुझे पता नहीं l चल छोड़, ये आदत हैं, कोई ख़ता नहीं l कभी कसमें और कभी वादा l हर बार बस पहले से ज़्यादा l इकरार, प्यार, दोनों बेशुमार l और भारी हर पल का इंतज़ार l गिरे हम बहुत मगर ये कोई खिजा नहीं l चल छोड़, ये आदत हैं, कोई ख़ता नहीं l तीखी, खट्टी, चंचल शरारतें l और तेरी जी से ज़्यादा हिफ़ाजतें l नज़र की शोखियाँ और चाहतें l तेरी मेरे लिए दिन रात की इबादतें l तेरी अब मगर इल्तज़ा नहीं या खुदा की रजा नहीं l चल छोड़, ये आदत हैं, और कोई ख़ता नहीं l जिंदगी की चाहत में जान कहने लगा l खुद को समर्पण कर मान कहने लगा l जो भूल बैठ खुद को मोहब्बत में तेरे l उजियारे की चाह में पा बैठा अँधेरे l भूल गए तुम भी उसको, किया इश्क अता नहीं l चल छोड़, ये आदत है, और कोई ख़ता नहीं l शशि सुमन
प्रयागराज , उत्तर प्रदेश

تعليقات