शीर्षक : बहुत याद आते हो "तुम"...!!!
ऊँची -ऊँची इमारतें ...!
शहरों की चहल -पहल ,
महंगी गाड़ियों की रेलम-रेल ।।
पर कहाँ गया अपनापन ???
बहुत याद आते हो तुम ...!!
भाभी से घण्टों बतियाना ,
और रुमाल की कशीदाकारी ...।
पूछ-पूछ कर सिंधी के बूटे निकालना ।।
घूम -घूम कर अम्माँ व बुआ को दिखाना ,
बहुत याद आते हो तुम ...!!!
रंग-बिरंगे गुलदस्ते ,
व पर्दे पर शायरी लिखना ।
स्पंजी गुड़िया की सजावट ,
दीवारों पर टँगे हमारे ही हाथों से,
राधा -कृष्ण की मोहिनी मूरत ।
बहुत याद आते हो तुम ...!!!
गाँव के शिवाले पर एकत्र होना,
बात-बात में दोस्ती के खातिर कसमें खाना।
नदी किनारे बर्तनों को चमकाना,
और मस्तीखोर अनबूझ जीवन ...।
बहुत याद आते हो तुम ...!!!
मनोरंजन के नाम पर ,
महीनों बाइस कोप का इंतजार ।
जादूगर का जादू ;
कठपुतली का नाच ,
बन्दर -भालू का ड्रामा ...।
बहुत याद आते हो तुम ...!!!
हवा मिठाई व चनाजोर गरम की मस्ती ,
खट्टी -मीठी रंग -बिरंगी गोलियां ।
गन्ने चूसने की चढ़ा -खड़ी ,
आम और जामुन को डाल से ।
गिरते ही लपक लेनें की कोशिश ...।।
बहुत याद आते हो तुम ...!!
अमराइयों की झुरमुट में ,
चिड़ियों की चह- चह ,
मकई के खेतों में प्यारा सा मचान ।
ककड़ी के फूट का खूबसूरत स्वाद ।।
हाँ, तभी तो बहुत याद आते हो तुम ...!!
बहुत याद आते हो तुम ।।
स्वरचित मौलिक रचना साभार प्रेषित
विजय लक्ष्मी पाण्डेय
एम. ए. , बी. एड. (हिंदी)
आजमगढ़, उत्तरप्रदेश
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