भूखे के हिस्से की रोटी
मैं देखता हूं बहुत बार
अपनी छोटी सी बिटिया को
खाना खाते हुए,
साथ में अपनी प्यारी गुड़िया को भी
खिलाने की कोशिश करते हुए,
पानी पीते हुए उसको भी
पानी पिलाने की कोशिश करते हुए,
सोते हुए उसको भी
साथ में सुलाते हुए,
यहां तक कि अपनी मां का दूध पीते हुए भी
उसको दूध पिलाने की कोशिश करते हुए,
फिर देखता हूं दुनिया में
बहुत सारे लोगों को भूख से मरते हुए,
रोटी के चंद टुकड़ों की खातिर
एक-दूसरे की जान का दुश्मन बनते हुए,
पापी पेट की खातिर
गलत धंधों में कई बार उतरते हुए,
दो जून की रोटी परिवार के जुटाने की खातिर
दिन-रात खून पसीना एक करते हुए,
तो सोचता हूं
कि काश सारी दुनिया बच्चों की तरह
अबोध होती,
तो कम से कम भूख किसी की मौत का
कारण न होती,
न इकट्ठा करके रखते बहुत लोग
जरूरत से ज्यादा
तो हरेक के पास होती उसके हिस्से की रोटी।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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