बारिश
हे बारिश
बार बार मत आया कर ।
जब जब
तुम आती हो
तब
बंद हो जाता है
धयाड़ी का काम
लौट आना पड़ता है
बाबा को
आधि धयाड़ी से घर ।
टपकने लगी है
छत
जो सालों पहले
पुराने सरकण्डों से बनाई थी ।
और
भीग जाता है
आटे का पींपा ।
बदबू मारने लगी है
कई महीनों
पुरानी धोई हुई गुदड़ी ।
पानी से भर गया है
पूरा घर ।
उसमें तैर रही है
बाबा की गांठी हुई चपल ।
अब तो
जोहड़े की पाल से
लाई हुई मिट्टी भी
चिकनी हो चुकी है ।
जो बार बार
पटक देती है मां को ,
जो लगी है
जापे से उठकर
घर का पानी बाहर
निकालने में ।
सतीश सम्यक
बड़बिराना, नोहर, राजस्थान
8000636617
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