अवनी
चहक रहे खग वृन्द सभी
झूम रही लतिका उपवन में।
शीतल हवा बही सुखदाई
अनुपम छटा मनोहर छाई।
*
अवनी तरूणी लावण्य रूप
नव युवती सा शृंगार सजाया।
धानी सी चुनरी ओढ़ कर
सकुचाई और शरमाई।
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कुसुम मधुर सुगंधित खिलकर
महकाते अन्तर्मन खुशबू से।
भर उठती खुशियां मुखरित
खिल उठते चेहरे मुस्काकर।
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आसमान पर श्याम व्योम हैं,
बूँदों से मोती बरसाते शीतल।
दामिनी रह-रह चमक रही ,
बादल घन-घन घड़-घड़ाते ।
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झूम झूम बरसो रे मेघा बरसो,
तर कर दो धरती का आँचल ।
सुख भर दो चहुँ ओर धरा पर,
नदिया सरोवर जल सराबोर करो ।
*
दसों दिशाओं से शीतलता के,
मधुर संगीत सुरों के भर दो।
काले मेघों बरसो रे मेघा बरसो,
हरित करो धरती का कण-कण।
*
मनुज हृदय संतुष्टि से तृप्त करो,
वैभव धरा में हो जग सुखी हो।
हर जीवो पर दया दृष्टि से हाथ धरो,
सुख के इन्द्रधनुष से सात रंग हो।
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धरती अम्बर एक रंग क्षितिज पर,
मनोहर मधुर रूप छाया हो ।
खग मृग वृन्द चराचर झूमें गायें ,
ऐसा गीत मनोहर भर दो, जग गाये।।
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