"स्वयं की रचयिता"
तुम्हारी घुटती हुई आत्मा का शोर
कही कैद न हो जाये
उलाहनों के शोर में
इसलिए चीखों जितनी ताक़त है
तुम्हारे भीतर और हिला दो वो चट्टान
जो रौंदता हो तुम्हारे सपने
जकड़ लिए जाए हाथ पैर तुम्हारे
डाल कर जंजीरे
बांध दिया जाए घर के आंगन में
दिखाने के लिए खोखलेपन से भरे
कालिख़ लिए दूर से चमकते चेहरे और
कपड़ो से खुद को सजाएं नंगे समाज को
पर तुम ,
लगाकर पूरा जोर अपनी चिंगारी से
गला दो लोहे की वो जंजीरे
और कुंच करो अपनी दुनिया में
छीन ली जाए किताबें
दिए जाने लगे उलाहने
काली,छोटी,मोटी, बदसूरत कह कर
तय किया जाने लगे तुम्हारे सुशील,सुंदर
सुघड़ होने का पैमाना
तो आग लगा दो ऐसी मानसिकता को
चीखों,चिल्लाओ,आवाज़ उठाओ
क्योंकि
आज़ादी,मन,ख़ुशी, और आत्मसम्मान
नही है जागीर किसी एक की
है ताक़त तो हिला सकती हो चट्टान
है ताक़त तो गला सकती हो लोहा
हैं ताक़त तो पा सकती हो आज़ादी
है ताक़त तो बना सकती हो नया समाज
है ताक़त तो खोल सकती हो संभावनाओ के दरवाजे
तुम्हारी एक चीख़ दिलाएगी सारा जहान
नही रचे जाते इतिहास रचे जाते हैं भविष्य
जिसकी रचयिता तुम हो सिर्फ तुम .........
@प्रिया गौड़
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