Paryavaran me zahar ,praniyon per kahar

 आलेख : पर्यावरण में जहर , प्राणियों पर कहर 

Paryavaran me zahar ,praniyon per kahar


बरसात का मौसम है़ । प्रायः प्रतिदिन मूसलाधार वर्षा होती है़ । कभी -कभी तो कई दिनों तक लगातार वर्षा की झड़ी लगी रहती है़ । जैसे ही पूर्वैया चलती है़ , आकाश में काले -काले बादल छा जाते हैं । एक समय ऐसा भी था जब  दुग्ध-धवल बगुले घनघोर घटा के नीचे पंख पसारे , लहराते हुए अपने गंतव्य की ओर जाते  दिखाई देते थे । यह दृश्य प्रकृति प्रेमियों के लिए बड़ा ही खास होता था । इस पर अनेकों कविताओं का सृजन हुआ । किंतु आज प्रकृति के कैनवास पर वह नयनाभिराम तस्वीर दिखाई नहीं देता । श्याम घन के नीचे श्वेत बगुलों वाला दृश्य अब अदृश्य हो चुका है़ । कारण है़ बगुलों का लुप्त होता अस्तित्व । 

खूबसूरत होने के साथ - साथ बगुले खेत, तालाब व कम पानी के अंदर से कीड़ा का सफाया भी करते थे  जिससे पर्यावरण की रक्षा भी होती थी। फसलों के बचाव को लेकर अंधाधुंध हो रहे कीट नाशक के प्रयोग ने बगुले को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया है।कुछ जाति के लोग मांस के लिए भी इसे मार डालते थे । 

इसी तरह कई और पक्षी विलुप्त प्राणियों की श्रेणी में या तो आ चुके हैं या आने के कगार पर हैं । 


विशालकाय पक्षी गिद्ध विलुप्त हो चुके हैं । अब इसे लोग पुस्तकों में ही देख और पढ़ पाएंगे । ये  मृत और सड़ रहे पशुओं के शवों का भोजन करते थे जिससे पर्यावरण की प्राकृतिक सफाई हो जाती थी ।  मृत शवों को समाप्त कर वे संक्रामक बीमारियों को फैलने से भी रोकते थे 

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के विश्लेषण के अनुसार डिक्लोफेनाक (Diclofenac) का पशु-चिकित्सा में उपयोग भारत में गिद्धों के विलुप्त होने का मुख्य कारण है़ । 

कौए भी अब विलुप्त होने के कगार पर हैं । इनके काँव -काँव प्रातःकालीन अलार्म का काम करते थे । किंतु अब यह दुर्लभ हो गया है़ । पेड़ों का कटना और दूषित भोजन इनके अस्तित्व को लील रहे हैं । 

 हमारे घर में अपना घर बनाने वाली चिड़िया गौरैया आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है ।अब यह भी यदा -कदा ही दिखती है़ ।  यूरोप में गौरैया संरक्षण, चिंता के विषय वाली प्रजाति बन चुकी है और ब्रिटेन में यह रेड लिस्ट में शामिल हो चुकी है । इसका एक मुख्य कारण है़ हमारे घरों में इसे स्थान न मिलना तथा छोटे और मध्यम ऊँचाई वाले पेड़ों की अनुपलब्धता । 


ग्लोबल वार्मिंग तथा शहरों और गांवों में बड़ी तादाद में लगे मोबाइल फ़ोन के टावर भी गौरैया समेत दूसरे पक्षियों के लिए बड़ा ख़तरा बने हुए हैं । इनसे निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालती हैं । 

वह भी पारिस्थितिक तंत्र के एक हिस्से के रूप में हमारे पर्यावरण को बेहतर बनाने में अपना योगदान देती है । गौरैया अपने बच्चों को अल्फा और कटवर्म नामक कीड़े भी खिलाती है जिससे हमारी फसलों की रक्षा होती है । 

पक्षी भी हमारे पारिस्थितिक तंत्र के हिस्से हैं । उनके अभाव में पर्यावरण में असंतुलन होना स्वाभाविक ही है़ । पर्यावरण असंतुलन का दुष्परिणाम तो हम भुगत ही रहे हैं । 

अतः पर्यावरण को स्वच्छ और प्रदूषण रहित बनाने की ओर शीघ्रातिशीघ्र ठोस कदम उठाना अनिवार्य है़ , समय की मांग है़ । इसके लिए मात्र सरकार पर ही निर्भर होना सर्वथा अनुचित होगा । सरकार के सुझाए गए नियमों एवं निर्देशों का पालन कर अपने पर्यावरण की सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना हमारा परम कर्तव्य है़ । 


सरस्वती मल्लिक 

मधुबनी , बिहार

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