महिला सशक्तिकरण
महिलाओं के सशक्त होने की किसी एक परिभाषा को निश्चित मान लेना सही नही होगा और ये बात सही साबित करने के लिए सबसे पहले ये मानना होगा कि मात्र बाहर काम करना ही सशक्तिकरण का द्योतक नही हो सकता है अगर आपके बाहर काम करते हुए भी आपका कोई शोषण कर रहा हो तो ये हम अपने एक सशक्त महिला होने के पैमाने पर खरे उतरे नही कह सकते ।
किसी महिला का सशक्त और दृढ़ इच्छाशक्ति के होने के लिए उसका संकल्प और ख़ुद के लिए प्रेम भी उतना ही मायने रखता है । एक दृढ़ संकल्प महिला कभी पुरुषों को खींचकर पीछे करने में यकीन नही रखती बल्कि खुद को स्थापित और पुरुषों के बराबर का सम्मान पाने का हक़ रखती है । आज की महिला बराबर और समानता का अधिकार चाहती है न कि लेडीज फर्स्ट का लॉलीपॉप पकड़ कर संतुष्ट हो जाती है जो उसे कमतर और कमजोर समझ कर पकड़ा दी जाती है।
आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नही है जहां महिलाएं डॉक्टर , इंजीनियर ,टीचर , ऑफिसर , पार्लियामेंट, सिनेमा , रेडियो जॉकी या एक साधारण महिला जो अपने रोजमर्रा के काम से आसान और सुगम करती है अपने परिवार की जिंदगी । वो करती है काम 24 घण्टे बिना किसी श्रम धन के ।
वो भी देश हित मे अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराते हुए महिला सशक्तिकरण का एक उदाहरण देती है ।
आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाएं लगातार चढ़ रही हैं समानता और अपने अधिकारों की सीढ़ियां । निभा रही है हर क्षेत्र में अपनी एक अहम भूमिका । निकल रही हैं अपने लौ लश्कर के साथ करने खुद को स्थापित जो अब तक चुप चाप रच रही थी हमारे और आपके लिए सूंदर दुनिया ...
सशक्तिकरण का रूप इतना व्यापक और विस्तृत है कि इसे हर महिला के नजरिए से देखना और समझना होगा।
आज पुरुषों का सहयोग छोड़ साथ चाहिए जो पुरूष आज निभा रहा है अपने साथ से कर रहा है हर उसकी महिला के अधिकारों का सम्मान जो उसका हक़ है .....
@प्रिया गौड़
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