आ अब लौट चलें
बहुत भाग चुके कुछ हाथ न लगा तो अब सचेत हो जाएँ और लौट चलें अपनी संस्कृति की गोद में जो आज भी जीवित है हम सबके अंतरात्मा में । जी हाँ ! आज हम अपनी योग की शक्ति पर प्रकाश डालेंगे जो हमारी भारतीय संस्कृति की देन है । सुबह का भूला शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते उसी तरह अगर हम योग की ओर लौट आएँ तो हम अब भी आने वाली पीढ़ी को उत्तम सौगात दे सकते हैं । योग की शक्ति को अब पूरे विश्व ने स्वीकारा है इस बात पर हमें गर्व होना चाहिए ।
योग जीवन जीने की कला का आधार है और हम उसी से अनभिज्ञ हैं । योग किसी भी उम्र के व्यक्ति और बच्चे कर सकते हैं बल्कि किसी भी उम्र से आरंभ कर सकते हैं कोई बंधन नहीं है । शुरूआत अगर बाल्यावस्था से हो तो क्या कहने । बच्चों में अविलंब आदत डाल दीजिए योग और प्राणायाम की यही आपकी ओर से उन्हे सदा स्वस्थ और सानंद रहने का आशीर्वाद होगा जिसे फलीभूत होते भी आप तत्काल देख सकेंगे । यह तभी संभव है जब घर - घर में सुबह उठकर ध्यान, योग, प्राणायाम करने की परंपरा हो । सबकुछ तगड़ी फीस देकर आप नहीं सिखा सकते बच्चों को । बच्चे हर पल अपने आस-पास अपने परिजनों को जो करते देखते हैं वही सबसे अच्छी तरह सीखते हैं । इसलिए अब स्वयं को बदलें अपने बच्चों के लिए तो ऐसा कर ही सकते हैं ।
कुछ प्रमुख योग आसन और प्राणायाम जो सभी को करना ही चाहिए जैसे कपालभाति, अनुलोम-विलोम द्वारा कई आम और गंभीर बीमारियाँ दूर होती हैं ।
महिलाओं, बहन - बेटियों के लिए तो योग रामबाण औषधि है। मासिक धर्म , गर्भ धारण , मीनोपॉज जैसे शारीरिक प्रकियाओं से हर स्त्री को दो-चार होना पड़ता है । योग द्वारा सभी प्रकार की समस्या से निपटने का रास्ता मिल जाता है ।हर कष्ट का उपाय है इनमें जो बड़े ऑपरेशन से बचा लेजाते हैं । बेटियों को तो अनिवार्य रूप से योग की आदत डाल दें जिससे भविष्य में होने वाली किसी भी शारीरिक कष्ट से निपटने को वह तैयार रहे । बात सिर्फ बेटियों की नहीं बेटों को भी योगी बनाएँ, जो उन्हे गलत प्रवृत्ति की ओर जाने ही नहीं देगा । एकाग्रचित्त बनेंगे, मन प्रसन्न रहेगा और सभी प्रकार के व्यसन से कोसों दूर रहेंगे, उत्तम व्यक्तित्व का विकास होगा । यही तो चाहते हैं न हम अपनी संतानों से! शारीरिक और मानसिक दोनो के विकास के लिए सरल सनातन मार्ग ही श्रेष्ठ है वो है योग ।
आजकल जिम जाने का बेहूदा चलन सिर चढ़कर बोल रहा है । कितना लाभ है इससे बिना इसपर विचार किए युवा वर्ग इसकी ओर इसकी ओर इस कदर आकर्षित है कि अनाप-शनाप पैसे खर्च करने से परहेज नहीं करते । जब विदेश में योग - प्राणायाम को सर आँखों पर बिठाया गया तब हमें इनके महत्व का भान हुआ ।
खैर जब जागो तब सवेरा! आइए अब लौट चलें अपनी प्राचीन परंपरा संस्कृति की ओर और योगी बनें ।
गायत्री बाजपेई शुक्ला
रायपुर (छ .ग.)
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