laghukatha freedom the swatantrta by anuj saraswat
लघुकथा - फ्रीडम-द स्वतंत्रता
प्रकाश की माँ ने उसे समझाते हुए कहा
प्रकाश बोला
"अरे माँ आप और दीदी अकेली कैसे रहोगी ,मेरा होना यहाँ जरूरी है "
माँ-"बेटा हमेशा याद रखना रिश्ते बाँधने वाले और बोझिल नही होने चाहिए, हम लोग अपना देख लेंगे तू जा और अपने सपनों की उड़ान को सार्थक कर ,तेरे पापा आत्मनिर्भर बनाकर ही गये हैं मुझे ,वो भी यही चाहते अगर होते तो ,अब कोई बहस नही ,बैग तैयार कर दिया है और तू जा "
भरे मन से माँ से विदा लेकर प्रकाश चल दिया शहर पहुंच कर रूम लेकर नौकरी देखने लगा ,इसी बीच दो चार दोस्त बन गये थे उसके एक दिन उन दोस्तों ने पार्टी दी प्रकाश को बुलाया दोस्तों के रूम पर पहुंचकर वहां का नजारा कुछ इस प्रकार था ।
7-8 लड़के और 3-4 लड़कियां थी एक मेज पर हर तरह की शराब रखी थी ,सिगरेट हुक्का और कुछ पावडर जैसा था , बर्तन मांसाहार वाले खाद्य पदार्थ से भरे थे ,सलाद और रायता भी था ,म्यूजिक चल उठा था लड़कियां लड़के थिरक उठे थे जाम के प्याले लेकर ,कुछ दोस्त प्रकाश के पास आये और कहा
" प्रकाश चल जो चाहिए ले ले हर तरह की दारू और लड़की है मन मचल गया होगा "
प्रकाश बोला
"आप लोग पार्टी करो मै सिर्फ औरेंज जूस लूंगा "
यह सुनकर सब लड़के और लडकियाँ हँसने लगे उनमें से एक लड़की बोली
"यार इस मम्मास बाॅय को कौन लेकर आया ,इसे फ्रीडम की समझ नही है ,अरे घर जेल होते हैं ,तभी तो हम लोग जानबूझकर बाहर निकलते हैं किसी कोर्स पढ़ाई के बहाने ,रोक टोक से दूर ,यह ग्वार लोग क्या जाने इंजॉय ,
प्रकाश मुस्कराया और कहा
"आप सही कह रहे हो फ्रीडम है कुछ भी करो ड्रग्स की डोज आपको और फ्रीडम देती है ,शराब से आपकी शक्ति बढ़ती है,लेकिन यही मायने है आपके फ्रीडम के मेरी फ्रीडम अलग है मेरी फ्रीडम मुझे मेरी जिम्मेदारी का अह्सास कराती है ,मुझे जीवन जीने की समझ बढ़ाती है ,आसान है आपकी जैसी फ्रीडम लेना लेकिन बहुत मुश्किल है इससे निकलना क्योंकि आदत हो जाती है इंजॉय के नाम पर फिर नशा मुक्ति केंद्र या परलोक जाकर ही यात्रा समाप्त होती है ,मैं हमेशा दूसरों की गलती से सीखता हूँ उसके लिए गलती करने की जरूरत नही होती ,हम आज अपने माँ बाप को धोखा दे सकते हैं लेकिन खुद को नहीं ,मैं यह नही कहता यह सब गलत है लेकिन हर चीज का बैलेंस जरूरी है मुझे पता लगा आप लोग का हफ्ते में चार दिन यही रहता है ,और कोई और जब माँ बाप के पैसे खत्म हो जाएंगे फिर क्या ?
अपने शौक पूरा करने के लिए गलत रास्ता चुनेंगे,सिर्फ एक बार यह सोचना कि माँ बाप का नाम रोशन कर रहे या बिगाड़ रहे ,नौकरी लग जाए फिर हम यह सब करेंगे यह भी सोच गलत है ,आखिर क्या जरूरत है? सेविंग्स नाम की चीज भी कुछ होती है ,लगता है मैनें आप लोगों की पार्टी खराब कर दी माफ करना ,लेकिन मैं इसे फ्रीडम नहीं मानता"
इतना कहकर प्रकाश वहां से चला गया कुछ समय बाद उसकी नौकरी लग गई साल दर साल गुजरते रहे किसी काम से उसके दूसरे शहर जाना हुआ वो अपने होटल से निकल ही रहा था कि कुछ आवाज सुनाई दी
"गुरूदेव गुरूदेव "
वो रूका पीछे मुड़कर देखा कुछ 3-4 लड़के लड़कियां उसे गुरुवार कहकर पुकार रहे थे ।
जब पास आये तो मालूम पड़ा यह तो वही लोग थे जो उस दिन पार्टी में थे जब प्रकाश ने सबको ज्ञान दिया था ।
प्रकाश चौंका
"अरे तुम लोग यहां कैसे ?
सब ठीक है न ?"
उनमे से एक लड़की बोली
"गुरूदेव आप कहाँ चले गये उस दिन ज्ञान देकर ,आपके जाने के बाद हम लोगों ने बहुत सोचा ,क्योंकि हम लोग भी गाँव से शहर आकर फ्रीडम के नाम अमीरों की नकल करने लगे थे धीरे धीरे कर्ज भी हो रहा था ,लेकिन आपकी बातों ने हमारी आँखे खोल दी ,हम लोगों ने शराब,ड्रग्स आदि चीजें छोड़कर नौकरी शुरू की इस दौरान आपको बहुत ढूंढा लेकिन आप मिले नही,फिर हम लोगों ने पैसे इकठ्ठा करके अपना बैंड बनाया और लोगों को अपने गानों के जरिये लोगों को जागरूक किया कि गलत संगत में समय न गंवाये और सतर्क रहें ।सेविंग्स की हमने।और मैने आप के ऊपर किताब लिखी थी कि कैसे आपने हमें राह दिखाई,स्वतंत्रता का असली मतलब बताया।
लेकिन अभी मार्केट में नहीं उतारी क्योंकि आप को ढूंढ रहे आखिर आपके हाथों से ही जो मुहूर्त करवाना था ,अब हमें कुछ नहीं सुनना इस रविवार एक होटल में आपके हाथों यह शुभ काम होना है और हां नाम आपको वहीं पता लगेगा ।"
प्रकाश अवाक रह गया कि चल क्या रहा है ?
वह मुहूर्त वाले दिन होटल में पहुंचा सारे तरफ उसके पोस्टर लगे थे जो उस दिन उसी लड़की ने लिये थे फिर एनाउंसमेंट हुआ
"प्लीज वेलकम आवर मोस्ट इंपोर्टटेंट गेस्ट फार दिस इवनिंग मिस्टर प्रकाश ,यह वही हस्ती हैं दोस्तों जो केवल 25 मिनट के लिए आज से 8 साल पहले हम लोगों से मिले थे और इनकी प्रेरणा से आज हम लोग लोक सेवार्थ काम करके जीवन सफल बना रहे है ,इस किताब में हमारी पूरी यात्रा का जिक्र है जिसके सारथी प्रकाश सर है सर प्लीज इनोगरेट योर बुक "
प्रकाश ने रिबन के साथ पेपर हटाया
पुस्तक का शीर्षक था
"फ्रीडम-द स्वतंत्रता "
यह वही शब्द था जो प्रकाश अक्सर यूज किया करता था ,उसकी आंखो से खुशी के आंसू टपक पढ़े इतना प्यार और खुशी अरबों रुपए भी देकर नही खरीदी जाती ।
सब लोगों ने उसे अपने कंधो पर उठाया और जोर से बोले
"जीवन कैसा हो ?"
फ्रीडम-द स्वतंत्रता वाला"
-अनुज सारस्वत की कलम से
(स्वरचित एवं मौलिक)
निवास- हरिद्वार (उत्तराखंड)
(सारे अधिकार सुरक्षित)
-धन्यवाद
(स्वरचित)
-अनुज सारस्वत की कलम से
(स्वरचित और मौलिक)