दिखावटी
मिहिका के दिल में बहुत कसक है। शुरुआत में तो ज़्यादा ही होती थी। जब भी माँपिता से, इस बात का ज़िक्र किया। वे कहते,"हमें तुझ पर विश्वास है।"
उसके बाद, कुछ कहने की हिम्मत नही जुटा पाई। उसे लगता, उसके निर्णय से सभी नाराज़ थे, इसलिए ऐसा कह, बात टाल देते हैं। बार बार प्रश्न करने से भी, घबराती थी।
मिहिका ने अठारह साल में बीएससी जॉइन की। पढाई में मन नही लगा। तो डेढ़ साल बाद, अलग कोर्स करने की ललक। उसे अपने माँबाप से दूर, दूसरे शहर ले आई।
पैसे का इंतेज़ाम, रो गाकर ही हुआ। मिहिका के बाद, एक बेटा था। उसके लिए भी सोचना है। कई बार मिहिका ने, उनको कहते सुना था।
ग्यारह साल बाद, मिहिका के साथ साथ, घरवालों के रहन सहन में भी, ज़मीन आसमान का अंतर आया। उसने जितना कमाया, बहुत कुछ किया, घर की व्यवस्था सुधारने के लिए। औसत दर्जे से ऊपर लगता है घर अब। सब संसाधन मौजूद हैं।
मिहिका का पति, माधव अच्छा इंसान है। मिहिका के माँपिता, माधव को समझा रहे हैं," हमारी बेटी का ख्याल रखना। अकेले मत छोड़ना। भरेपूरे परिवार में रही है। अकेलेपन से घबरा जाती है।"
मिहिका आश्चर्य से, दोनों को, पर्दे के पीछे से, देखती रहती है। इतने साल हो गए, फिर भी नही भूलता।
आज पहली बार मायके से ससुराल लौटना है। ये सब बातें, दिल में छुपी ग़मगीन यादों को, हवा दे रही हैं।
बेगाने शहर में वो कहाँ, कैसे, किन हालातों में, किसके साथ मैनेज करती है?? किसी ने कभी, जानने का प्रयास नही किया। ना कोई मिलने ही आया।
घर से आये थोड़े से पैसे। पार्टटाइम नौकरी के सहारे, अपनी पढ़ाई निपटाई। संघर्षों में, माधव पता नही कहाँ से आ गया। और जीवन की मुश्किलें सरल होती गईं।
माधव के सामने ऐसे दिखावटी व्यवहार और ऐसी समझाइश का सार समझ नही आया, मिहिका को।
मौलिक और स्वरचित
कंचन शुक्ला- अहमदाबाद
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