kavitaon ke aor by priya gaud

 "कविताओं के ओर"

kavitaon ke aor by priya gaud


खोजें नही जाते कविताओं और कहानियों के ओर

ये पड़ी रहती है मन के उस मोड़ पर 

जो बेढंगी तरीके चलती ही रहती है 


जो खाली न हुआ कभी संवेदनाओं के शहर से

जो भागता रहा गली, कूँचे, शहर और जंगलों में

जो गोते लगा रहा भावनाओं के तालाब में

जो समझता रहा अपना और तुम्हारा अंतर्मन


कभी खाली नही होता अंतर्मन ढ़ेरो लेखों से

कभी निर्जन नही होते अंतर्मन के जंगल

कभी दरारें नही पड़ती जहां भरा हो मीठा जल

मन कभी खाली नही रहता लोगो की पसन्द से


ये बस जंगल ,पहाड़,पानी,हवा से होते हुए 

पहुँचते है अपने और लोगो के मन तक

जो जोड़ता जाता है उन्हें उनके अतीत और भविष्य से

नही है कोई ओर न कोई छोर ये है चलता अंतर्मन......


@प्रिया गौड़

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