ठहर गई है नदी!
मूक क्यों हो कुछ तो कहो
कर्णभेदी गूंज में हूंकार करो
ठहरे जल में कंकर उछाल
अधोगति के बंध तोड़ दो
सृजित लहरों की गति से
उत्ताल तरंगों की संगति से
जमे जलकुंभी अवसाद को
प्रबल प्रवाह का प्रतिघात दो
जीवन प्रवाह को सदगति दो
श्रम शोणित को सम्मान दो
करुण क्रंदन में उल्लास भरो
इतिहास में अध्याय अंकित करो.
----------------------------------------------
@ अजय कुमार झा.
31/5/2021.
Click here👉 Like us on Facebook
Click here👉 Follow us on Instagram
@ अजय कुमार झा.
31/5/2021.
Click here👉 Like us on Facebook
Click here👉 Follow us on Instagram
Comments
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com