शूरमा
जीवन मग में चलना तो , बस सदा अकेले पड़ता ।
शूरमा जो होता वह रण में , निपट अकेले लड़ता ।।
रहता जो पूरित साहस से , तनिक नहीं घबराता ।
विचलित करके कदम न अपना , पृष्ठ भाग में जाता ।।
नहीं ढूँढ़ता संग कोई वह , तब ही कदम बढ़ाएँ ।
वरना हम ना निपट अकेले ,
रहकर कुछ कर पाएँ ।।
किंतु रहित साहस से होते , कदम ठिठकता उनका ।
लेकर संग किसी का बढ़ना, हो अवलंबन जिनका ।।
ऐसी सोच लिए जो होते, तनिक न कुछ कर पाते ।
कदम बढ़ाने से पहले ही , उर कंपित कर जाते ।।
पर जो ठान लेता खुद पर , हर संभव कर दिखलाता ।
दे साहस का प्रतिमान ,निज नाम अमर कर जाता ।।
भूधर का चीर वज्र वक्षभी , राह बना वो देता ।
धरणी से ला अंबुधार मरुथल पुष्पित कर देता ।।
समय सदा उन शूरों की ही ,अमिट कहानी कहता ।
कुछ करके दिखलाने हेतु , जिनका रुधिर उबलता ।।
--- कमल सीवानी , रामगढ़ ,सीवान , बिहार
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