kavita sanwr jati hai by ajay prasad

संवर जाती है

धूप जब भी बर्फ़ सी पिघल जाती है
तो मजदूरों के पसीने में ढल जाती है।
ठंड जब कभी हद गुजर से जाती है
झोपड़ीयोंं में जाकर ठिठुर जाती है ।
बारिश जब आग बबुला हो जाती है
कई गांवों औ कस्बों में ठहर जाती है।
अरे मौसम की मार झेलने में माहिरों
तुम्हारे कारण तिजोरियां भर जाती है ।
कुदरत का कानून भी कमाल है यारों
वक्त के साथ ये ज़िंदगी संवर जाती है
-अजय प्रसाद
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