kavita Sandeh by sudhir srivastav

 संदेह

kavita Sandeh by sudhir srivastav


संदेह के बादल

एक बार घिर आये,

तो सच मानिए कि

फिर कभी न छंट पाये, 

मान लिया छंट भी गये तो भी

उसके अंश अपनी जगह

कभी अपनी जगह से 

न हिल पाये।

संदेह ऐसा नासूर है

जो लाइलाज है यारों

जो भी इसका शिकार 

हो गया एक बार

मरने के बाद ही

वह इससे मुक्त हो पाये।

◆ सुधीर श्रीवास्तव

      गोण्डा, उ.प्र.

 ©मौलिक, स्वरचित,अप्रकाशित

Comments