संदेह के बादल
एक बार घिर आये,
तो सच मानिए कि
फिर कभी न छंट पाये,
मान लिया छंट भी गये तो भी
उसके अंश अपनी जगह
कभी अपनी जगह से
न हिल पाये।
संदेह ऐसा नासूर है
जो लाइलाज है यारों
जो भी इसका शिकार
हो गया एक बार
मरने के बाद ही
वह इससे मुक्त हो पाये।
◆ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
©मौलिक, स्वरचित,अप्रकाशित
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