"पृथ्वी "
पृथ्वी के उदर पर जो पड़ी हैं दरारें
ये प्रमाण है कि वो जन्म चुकी है शिशु
इतंजार में है उस मरहम के
जो भर दे उसकी दरारें
और खिल सके पृथ्वी की कोख़ में
नन्ही नन्ही कोपलें
लौट आए बसंत
फिर खुद पर इतराए जंगल
हरे भरे हो पेड़ औऱ पहाड़
सुनाई दे पंक्षियों का कलरव
और पंख पसारे नाचे मोर
पूरी धरती सजे अपने जन्मे अनगिनत
बच्चों के हर रंग से राग से प्यार से
जिए उसका ख़ुद का बसन्त
जो सौंपा है उसने हमारे हाथ सदियों से.....
-प्रिया गौड़
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