कविता - पहले जैसा नहीं रहा गांव आज मेरा ।
पहले जैसा नहीं रहा गांव आज मेरा ।
देख कर माहौल उतर जाता है चेहरा ।देता नहीं कोई अब तो रोटी गाय को ,
दूध - दही छोड़कर पियें सब चाय को ।
चींटियों के बिल पर आटा नहीं डालते ,
छोड़कर गाय भैंस अब कुते हैं पालते ।
काट डाले पीपल, बरगद और जाल ,
सुख गया जोहड़ और सूखा पड़ा ताल ।
मिलती नहीं रस्ते में कहीं भी ठंडी छांव ,
क्रिकेट में मशगूल भूले कुश्ती के दांव ।
हैं खेत - खलिहान सूने, नाचता नहीं मोर ,
चिड़ियां नहीं चहकती, अब होती जब भोर ।
सावन के झूले गये , गया फागुन का फ़ाग ,
डी .जे के शौक में भूल गए रागिनी व राग ।
भाई के भी भाई आज नहीं बैठता पास ,
इस राजनीति ने किया भाईचारे का नाश ।
मंदिर के सामने बिकती है अब तो शराब ,
विद्यालय और अस्पताल की दशा है खराब ।
पीकर शराब करते हैं अब शराबी हुड़दंग ,
सुखचैन मेरे गांव का हो गया है भंग ।
थाने और कचेहरी में नित जा रहे हैं केश ,
दीन - हीन और शरीफ यहां भोगते क्लेश ।
बेरोजगारों की तो यहां घूमती है अब फ़ौज ,
शराब , सुल्फा पीने में समझे अपनी मौज ।
ताऊ -ताई , चाचा - चाची रिश्ते खो गए ,
अंकल और आंटी ही अब सारे हो गए ।
टा-टा , हेलो , हाय गुडबाय अब आ गई ,
नमस्ते की जगह ये ही मन को भा गई ।
बड़े - बूढ़ों का अब यहां रहा नहीं मान ,
कहे पंवार बचाले मेरे गाँव को भगवान ।
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