महामारी का साया
किसी को घेर लिया है
घोर निराशा ने,
किसी के मन में
मौत का डर समाया है,
खुद को मजबूत बता
भरमाता है मन कोई,
कोई इस पर अब भी
विश्वास नहीं कर पाया है,
मन बहलाने के लिए
कह ले कोई कुछ भी
लेकिन इस महामारी में
आत्मविश्वास सबका ही डगमगाया है।
किसी को सता रही है
फ़िक्र अपने परिजनों की,
किसी का मन अपनी जान
की सोच ही घबराया है,
सपनों के अधूरा रह जाने का
रंज बड़ा है किसी को,
कोई महामारी के झूठे
प्रचार से ही बौखलाया है,
मन बहलाने के लिए
कह ले कोई कुछ भी
लेकिन इस महामारी ने
हाथ खड़ा सबका ही करवाया है।
किसी को खाए जा रही है
अपने रोजगार की चिंता,
किसी को भुखमरी का मंजर
अबके फिर से नजर आया है,
परिवार में समय बिताने की
सोचकर खुश है कोई,
कोई पढ़ाई के नुक्सान से
बड़ा ही कसमसाया है,
मन बहलाने के लिए
कह ले कोई कुछ भी
लेकिन इस महामारी ने
जीने का तरीका सबका बदलवाया है।
जितेन्द्र 'कबीर'
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापकपता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
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