कहॉं चले गये तुम
खत से निकल करबेजान खत मेरे पास रह गये
शब्दों से तुमको सजाया था
वही शब्द मुझसे दगा़ कर गये
बड़े ही जतन से संभाला था खत को
किताबों के पन्नो में दबाया था खत को
फिर भी वो खत से निकल कर चले गये
बेवफाई का हमने नजारा जो देखा
खत को सड़क पे तड़पते हैं देखा
मोहब्बत की कैसी हालत कर गये
(स्वरचित रमेश वर्मा-वाराणसी)
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