kavita do kandhe mil jate hai by chanchal krishnavanshi
कविता -दो कन्धे तो मिल जाते हैं यहां मुझे
दो कन्धे तो मिल जाते हैं यहां मुझे, रोने के बाद
मानता हूं कि तुम नहीं रोओगे,मुझे खोने के बाद।
मेरी खुशकिस्मती से अभी,वाकिफ कहां हो तुम
मेरी मां परेशान हो जाती है,मेरे दूर होने के बाद।
ज़ालिम दुनियां तेरे दर्द का तमाशा ही बनायेगी
इस बेरहम दुनियां के सारे ही बोझ ढोने के बाद।
मुफलिसी में जीना भी तो एक गुनाह है 'चंचल'
वक्त भूल जाते हैं लोग क्यों अमीर होने के बाद।
मानता हूं कि तुम नहीं रोओगे,मुझे खोने के बाद।
मेरी खुशकिस्मती से अभी,वाकिफ कहां हो तुम
मेरी मां परेशान हो जाती है,मेरे दूर होने के बाद।
ज़ालिम दुनियां तेरे दर्द का तमाशा ही बनायेगी
इस बेरहम दुनियां के सारे ही बोझ ढोने के बाद।
मुफलिसी में जीना भी तो एक गुनाह है 'चंचल'
वक्त भूल जाते हैं लोग क्यों अमीर होने के बाद।
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चंचल कृष्णवंशी