kavita banabatta by dr hare krishna

 बाणभट्ट

kavita banabatta by dr hare krishna


बाणभट्ट की विद्वता का

भूषण को उपहार मिला है

पिता पुत्र की रचनाओं पर

लिखने का अधिकार नहीं है ।।


कहते हैं कादंबरी उनकी,

रचनाओं में बहुत श्रेष्ठ है,

अध्ययन मेरा बहुत अल्प है

अनुशीलन करने का मन है  ।।


विषय वस्तु का ज्ञान अल्प है

फिर भी उसकी गहराई में,

झांक सकूं  मन कहता है,

बाणभट्ट को नमन है मेरा। ।।


कादंबरी के अंतर स्थल में,

कितना गहरा प्रेम छुपा है,

कहना पड़ा किसी ज्ञानी को

वहां कोई क्या तरुणी है?


विद्वानों में होड़ मची थी,

अनुशीलन भी उनका था

वाणी की व्यापकता पर

शब्द ध्वनि सुंदरता पर  ।।


कहने  लगे सभी मिलकर,

नहीं नहीं वाणी बाणस्य ,

रचना बिल्कुल अद्भुत है

भूषण भट्ट संयोजक हैं।   ।।


साहित्य तो एक दर्पण है,

हम सब उसके अनुचर हैं,

अनुशीलन की क्षमता जितनी,

दर्शन बांटा करते हैं।    ।।


कादंबरी की रचना पर,

कविवर का कैसा संघर्ष,

जीवन में आया होगा,

निर्णय उनका अपना था।  ।।


बाणभट्ट की चिंता थी,

कादंबरी की पूर्णता की

अपने पुत्र को आदेशित कर

भार मुक्त हुए होंगे।     ।।


जीवन की लीला कैसी है,

कलम कहां बंध जायेगी  ,

बाणभट्ट की अपनी इच्छा

कितना अहम रही होगी   ?


   डॉ हरे कृष्ण मिश्र

     बोकारो स्टील सिटी

     झारखंड ।

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