अनुबंध
परंपरागत अनुबंध हमारा,
कब टूटेगा था ज्ञात नहीं ,
सहज सरल जीवन जिया है
हमको है अभिमान नहीं। ।।
सुखद कामना मंगलमय जीवन
सबको हो अधिकार यही ,
मिला हमें भी ऐसा जीवन
उसका भी है ज्ञात मुझे। ।।
जीवन का अनुशीलन करना
सुख दुख का अभिनंदन करना,
जीने का भी अर्थ रहा है ,
कभी नहीं तोड़ा अनुबंध ।।
संस्कृति हमारी सभ्यता अपनी,
शालीन बना अपना जीवन
जीवन की छोटी नौका ले
पाया अपना जीवन तट। ।।
सौंदर्य भरा पावन निश्छल ,
चौवन वसंत आया हमतक
गिन गिन कर अपने जीवन में,
स्वागत करता था हरदम ।।
जीवन के सुनेपन को भी,
हंस हंस कर सहलाया था,
भक्ति भाव से ओतप्रोत थे
अपने जीवन पनघट पर ।।
गुथियों को सुलझा ने में,
सदा साथ तू देती थी,
कभी भी छाते दुख के बादल
सहज सरल छंट जाते थे। ।।
मिलजुल कर हम जीवन जीना,
सीख लिया था संग संग में ,
कैसे भूल हुई कहां पर ,
बिछड़ गए अपने पथ पर। ।।
गिला शिकवा करूं मैं किससे
मेरे भाग्य में जो भी था।
आंसू के घूंट पी पी कर,
दर्द भरे गीतों को गा ।।
तथास्तु,,,,, डॉ हरे कृष्ण मिश्र
Life is very painful but it is very nice
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