kavita ambar ka dheraj tut gaya by anita sharma

कविता 

kavita ambar ka dheraj tut gaya by anita sharma


आज धरती का दुख देख-देख।

अम्बर का धीरज टूट गया।


भीग गयी अंखिया अम्बर की।

बरस गये अश्रु बादल बनकर।


हुआ दुखी तब मिलन धरा का।

अपने अम्बर के आलिंगन में।


संताप अहा ! दोनो को था ।

मनुज टूट बेहाल जो था ।


सुबक दुखित दोनो ही थे ।

विकराल रूप से अशक्त सभी।


अलग-अलग थे सभी लोग यहाँ ।

कोई भी मिलकर दुख न बाँट सका।


ऐसी विपदा से टूटा हृदय ।

बिन बुलाई आपदा घिर आयी।


कैसे धीरज देता अम्बर-धरा को।

खुदका धीरज ढह गया आज।


कितनी लाशों से धरा दबी।

कितनी आहो को सहती ।


द्रवित नेत्रो से अम्बर-धरती को देख रहा।

कितने असहाय से विध्वंस को झेल रहे।


क्रूर प्रहार धरती ने झेला।

निष्ठुर प्रहर बलशाली है।


धरती का सीना धधक रहा।

अम्बर का धीरज पिघल रहा।

    अनिता शर्मा झाँसी 

     (स्व-रचित )

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