kavita ahankar by mosam khan alwar

कविता–अहंकार

kavita ahankar by mosam khan alwar
अहंकार एक अंधियारा है,
जग में सबसे ये न्यारा है,
ऊंच नीच का भेद नही
नित जीवन में ललकारा है।।

अहंकार में तुझको होश नहीं,
अहंकार है तेरे पास कुछ शेष नहीं
नजर नहीं आता तुझको कुछ भी,
अहंकारी है तू कुछ और नहीं।।

बुरा काम अहंकार कराता,
अपनो से तुझे अहंकार गिराता,
नहीं दिखती दुनिया तुझको,
अहंकारी तु क्यू इतराता।।

अहंकार वहां मानवता नही है,
मानव का मानव ही नहीं हैं,
जिस दिन मानवता जागेगी,
जग में खुशियां कोई गम नही है।।

छोड़ अहंकार कुछ अच्छा करले,
अपने होने की पहचान करले,,
जिंदगी छोड़नी पेडेगी एक दिन,
अहंकार से तौबा करले ।।

अहंकार से जो जीत जायेगा,
मान सम्मान सब मिल जायेगा,
जग जीवन खुशियां ही खुशियां
अपनो में अपना मिल जायेगा।।

️ मौसम खान️ अलवर,, राजस्थान
स्वरचित सरल बोल

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