आज निकल गया
हम कल को संवारने में लगे कि,
आज फिसल गया।हम बुन रहे थे भविष्य को कि,
आज निकल गया।
आगामी कल की कल्पना में ,
आज उलझ गये ।
मुट्ठी में पकड़ना चाहा भविष्य ,
और आज फिसल गया।
कल की फिक्र में लगे थे कि,
आज उम्र ढल गयी।
कल के समय की जोड़-भाग में,
आज हथेली से निकल गया।
जो पल हमारे साथ थे,
वो यूँ ही चले गए ।
हम होश में कब थे कि स्वप्न में रहे,
आज फिक्र में चला गया।
होश में जब आया तो ,
उम्र निकल गयी ।
शौक-तमन्नाए धरी की धरी रह गई,
और आज वक्त चला गया।
चिंता दौड़ भाग में ही,
आज फिसल गया।
--अनिता शर्मा--स्वरचित रचना----
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