गीत
आराध्य तुम्ही, आराधना मेरी,
साध्य तुम्ही, साधना भी मेरी ।
साध्य तुम्ही, साधना भी मेरी ।
स्वर्गलोक से चल कर आयी ।।
कल कल,छल छल गंगा जैसी,
जीवन के सुंदर भूतल में ,
बहती आई निर्झर बनकर,
शाम सवेरे मिलजुल कर ,
गाते रहते छंद विरल। ।।
लुप्त हो गई ध्वनि तुम्हारी
श्रवण करने को आतुर मन ,
तन मन का तो सुध नहीं है
प्यारे छंद हो गए विकल ।।
काव्य और कामना तुम्हारी ,
मंगलमय गीतों बन आयी ,
रही अधूरी साधना मेरी ,
जीवन का साध्य बनी मेरी। ।।
कठिन परीक्षा कब तक होगी ,
अध्ययन मेरी रही अधूरी ,
लेखन अब अवरुद्ध हुआ है ,
लिखना बिल्कुल भूल गया हूं। ।।
गाने को अब मन है आतुर ,
बिरह गीत को कैसे गाऊं ,
काव्य अधूरे रह गए मेरे ,
साध्य हमारे केवल तुम हो। ।।
स्मृति तुम्हारी शेष रही है
मिटे नहीं जीवन से।
प्राप्त हुआ है इतना मुझको,
कहां मिला है किसको। ?
जिसने मुझ पर उपकार किया है,
पीड़ा का अनुदान दिया है
जीवन को जीने का इससे,
नहीं बड़ा उपहार है कोई। ।।
सीता की हो गई अग्निपरीक्षा,
अब मेरी परीक्षा बाकी है,
सीता और राम का आना
धरती का मनोहारी है ।।
तथास्तु,,,,,, डॉ हरे कृष्ण मिश्र
कल कल,छल छल गंगा जैसी,
जीवन के सुंदर भूतल में ,
बहती आई निर्झर बनकर,
शाम सवेरे मिलजुल कर ,
गाते रहते छंद विरल। ।।
लुप्त हो गई ध्वनि तुम्हारी
श्रवण करने को आतुर मन ,
तन मन का तो सुध नहीं है
प्यारे छंद हो गए विकल ।।
काव्य और कामना तुम्हारी ,
मंगलमय गीतों बन आयी ,
रही अधूरी साधना मेरी ,
जीवन का साध्य बनी मेरी। ।।
कठिन परीक्षा कब तक होगी ,
अध्ययन मेरी रही अधूरी ,
लेखन अब अवरुद्ध हुआ है ,
लिखना बिल्कुल भूल गया हूं। ।।
गाने को अब मन है आतुर ,
बिरह गीत को कैसे गाऊं ,
काव्य अधूरे रह गए मेरे ,
साध्य हमारे केवल तुम हो। ।।
स्मृति तुम्हारी शेष रही है
मिटे नहीं जीवन से।
प्राप्त हुआ है इतना मुझको,
कहां मिला है किसको। ?
जिसने मुझ पर उपकार किया है,
पीड़ा का अनुदान दिया है
जीवन को जीने का इससे,
नहीं बड़ा उपहार है कोई। ।।
सीता की हो गई अग्निपरीक्षा,
अब मेरी परीक्षा बाकी है,
सीता और राम का आना
धरती का मनोहारी है ।।
तथास्तु,,,,,, डॉ हरे कृष्ण मिश्र
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