ग़ज़ल :- "अतीत का गीत"
आज तुम पर कोई गीत लिखने बैठा हूँ
तुम्हें इस मन का मीत लिखने बैठा हूँ
बहुत कम वक्त में निभाई जो हमने
आज मैं वो प्रीत लिखने बैठा हूँ
सुनाने के लिए ही सही,कुछ तो दिया तुमने
अपना खूबसूरत अतीत लिखने बैठा हूँ
कैसे हुई ये ज़माने को क्या मालूम
मेरी हार और तुम्हारी जीत लिखने बैठा हूँ
मोहब्बत में क्या-क्या होते हैं फसाने
तुम्हारे जीत पर वो रीत लिखने बैठा हूँ
बहुत कम वक्त में निभाई जो हमने
आज मैं वो प्रीत लिखने बैठा हूँ
- अभिषेक सुधीर
जिला- आजमगढ़
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