ग़ज़ल
जब से यार मेरा सियासी लोगो का गुलाम हो गया
जमीर बेच दिया उसने थोड़ी सी दौलत की खातिर,
आज इंसानियत का जज्बा,दौलत के नाम हो गया
यह क्या हो रहा आज ज़माने में अख़बार बोलता
नारी की अस्मत का गहना तो जैसे बेदाम हो गया,
इक ईमानदार अफसर परेशान है घर चलाने में
भर्स्ट बाबू,को देखो कितना वह मालामाल हो गया
सियासत की गणित मानवता ख़त्म कर रही अब,
भोली भाली आवाम को बहकाने का काम हो गया
देखो सियासी खेल न खुदा को छोड़ा न मजहब को,
कभी हिन्दू.मुस्लिम,कभी मस्जिद मंदिर राम हो गया
#बृजेश_सिन्हा_सागर_कोटा_राजस्थान
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