बाल श्रमिक दिवस पर
कविता
कितनी मजबूर जिन्दगी ,
मासूम उम्र में मेहनत करते।
कचरा बीनने को मजबूर ,
कितने मैले लिवास ओढ़ते ।
ढाबो में दिखते ये बच्चे ,
जूठे बर्तन धोते बच्चे ।
मजबूरी में ढोते दिखते ,
कहीं ठेला कहीं ईटा गारा।
कितनी बातें सरकार गिनाती ,
कितने वादे संकल्पो में होते ।
बाल मजदूरी फिर-फिर दिखती ,
शोषित कृपण मासूम उम्र के।
हाँ लाचारी साफ झलकती ,
मैले बदन ,अधनंगे बच्चे ।
कोई तो शर्मिंदा होकर ही,
बाल-श्रमिक बनने से रोको ।
नेताओं अब स्वार्थ छोड़कर ,
इन मासूमो का जीवन बदलो ।
काश वो पल भी आये जब ,
भारत माँ के निर्धन संवरेगे ।
हाँ इनका भी जीवन बदलेगा ,
एक नई सुबह जल्दी निकलेगी।।
----अनिता शर्मा झाँसी-----
-----स्वरचित रचना-
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