Gramya yuva dal - story

 हेलो फ्रेंड्स अभी तक आपने धन श्याम किशोर की शहर से गांव में आने तक की कहानी और खेती करने के बारे में ग्राम युवा दल बनाने तक की कहानी सुनी थी भाग 2 देने वाले हैं

                 🙏🏽 ग्राम्य युवा दल 👉🏼

Gramya yuva dal - story


इस दल ने  संकल्प लिया  कि अपने गांव को वे आदर्श गांव बनाएंगे  |मिलजुल कर परिश्रम करके भी अपनी रूपरेखा ही बदल देंगे |उसका गांव मुख्य सड़क से लगभग 2 किलोमीटर दूर था | युवकों ने हाथ में कुदाल ली और सामूहिक रूप से प्रतिदिन कुछ घंटे श्रमदान करके एक ही महीने में पक्की सड़क बनवा कर गांव को मुख्य सड़क से जोड़ दिया|

    अब गांव के बड़े बूढ़े तथा अन्य व्यक्ति भी धन श्याम तथा युवकों से प्रभावित हुए बिना ना रह सके |उन्होंने युवक दल की बहुत प्रशंसा की तथा साथ ही उन्होंने रचनात्मक कार्यों के लिए हर प्रकार की सहायता देने का भी आश्वासन दिया |इससे युवकों का उत्साह बहुत बढ़ गया | अब उन्होंने गांव के निर्माण के लिए व्यवस्थित रूप से योजनाएं बनाई |  इसके लिए उन्होंने सरकारी सहायता का मुंह ताकना भी उचित ना समझा | उन्होंने गांव के मुखिया को अपनी योजनाएं व समझाए | फिर एक सभा करके सभी व्यक्तियों को उन योजनाओं से परिचित कराया, साथ ही सहायता करने के लिए भी कहा | सभी ने अपनी-अपनी सामर्थ्य के अनुसार युवक दल को चंदा दिया | 1 सप्ताह में ही उनके पास इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई कि वह अपना कार्य प्रारंभ कर सकें |


     अब युवक दल तेजी से अपने गांव के काम में जुट गए | गांव के गलियारे, खरंजा में बदल दिए गए | हर घर से बहते रहने वाले गंदे पानी की निकासी के लिए पोखर तक नालियां बनाई गई  | दिशा-मैदान की समस्या हल करने के लिए गांव के बाहर स्वयं सफाई वाले शौचालय बनाए गए | पनघट की समस्या भी युवकों के विचार से अछूती नहीं रही  | बस्ती के निकट की छतरी वाला पक्का कुआं बनाया गया |  कुए के एक और पशु की प्याऊ तथा दूसरी ओर कुएं की जगत में हटकर नीचे की ओर कपड़े धोने तथा नहाने का स्थान बनाया गया था |  

  घनश्याम की मौसी सुमित्रा उन्हीं दिनों उसके यहां मेहमान बन कर आई  | उन्होंने कस्तूरबा महिला मंगल योजना से प्रशिक्षण लिया था |  गांव के व्यक्तियों में अपने विकास के लिए उत्साह देखकर वह इतनी अधिक प्रसन्न हुई कि वहीं रहकर महिला मंडल और बालबाड़ी चलाने की बात उन्होंने रखी |  सभी ने उनकी इस योजना का हृदय से स्वागत किया  |  गांव भर की महिलाएं तो सप्ताह भर में ही सुमित्रा बहन से बड़ी प्रभावित हो गई थी |  सुमित्रा बहन अब उनके बीच रहेगी, उन्हें भी अपने जैसा ही निपुण बनाएंगी  | यह सोचकर उनकी प्रसन्नता की सीमा ना थी ||

    महिलाएं जो खाली समय में गप्प लड़ाती और एक-दूसरे की बुराई करती थी, अब अपने और बच्चों के कपड़े सिलना सीखने लगी |  सूत-कातना, मोमबत्ती बनाना, मंजन और साबुन आदि बनाना जैसे लघु उद्योग धंधों की भी सुमित्रा बहन ने उन्हें शिक्षा दी, जिससे वे भी चार पैसे कमाने लगी  | भोजन खाने और पकाने की सही जानकारी, बच्चों का पालन-पोषण, अपना और परिवार का स्वास्थ्य संरक्षण, स्वच्छता, परिवार नियोजन आदि विषयों को भी उन्होंने ग्रामीण स्त्रियों और बालिकाओं को समझाया   | यही नहीं, उन्होंने साक्षरता के प्रति भी उनकी रुचि जगाई  |सुमित्रा बहन ने वर्ष भर में ही रुचिकर ढंग से महिलाओं को पढ़-लिख पाने में समर्थ बना दिया  | महिलाएं उनसे इतना स्नेह और सम्मान करती थी कि घर-परिवार की समस्याएं नि: संकोच भाव से उनके सामने रख देती और उनसे सही निर्देशन पातीं  | सुमित्रा बहन के नेतृत्व से अब उन्होंने उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों का भी ज्ञान होने लगा था  |

     इस प्रकार पूरे के पूरे गांव का कायाकल्प होने लगा था  | स्त्री-पुरुष और बालक सभी में अपने और गांव के प्रति प्रगति के लिए नूतन उत्साह था  |  वे सभी मिलजुलकर घर-परिवार  की तरह रहने का प्रयास करते  |  शाम को सभी पंचायतघर के पास बड़े मंदिर के सामने इकट्ठे होकर भजन-कीर्तन गाते  | इसके बाद वे एक-दूसरे की बात सुनते-समझते - कुछ परिवारों के लंबे समय से एक-दूसरे में आपसी रंजिश चली आ रही थी  | घनश्याम और गांव के मुखिया आदि ने उन्हें समझा-बुझाकर मेल-मिलाप करा दिया  | इस प्रकार गांव का वातावरण अब स्वर्ग बन गया था  |  जग्गू काका, गोपी दादा, सीरिया चाचा जिन्होंने शुरू में घनश्याम के खेत बिकवाने की कोशिश की थी, अब वे भी गांव के बच्चों और युवकों से चौपाल पर बैठे-बैठे कहते रहते- अरे भैया  !  खूब पढ़ो-लिखो और हमारे घनश्याम जैसे राजा बेटा से बनो  |  धन्य है  भैया मुरलीधर, जिनके सपूत ने सारे गांव को तार दियों, उदार कर दिया  |   अरे बेटा हो तो ऐसे ही हो   | बाने अपने पितर को तार दिया और सारे गांव कूं ही स्वर्ग बना दियो है   |'

      थोड़े ही समय में घनश्याम गांव में बहुत लोकप्रिय हो गया था  |  अपने अच्छे व्यवहार से उसने क्या वृद्ध,  क्या साथी, क्या बच्चे सभी का मन जीत लिया  |  गांव वाले उसे बहुत मानते  | अनपढ़ होने से उनकी जो समस्याएं खड़ी होती  उन्हें घनश्याम मिनटों में हल कर देता |  गांव के बड़े बूढ़े भी अब अनुभव करने लगे थे कि किसान को शिक्षित होना चाहिए  | खेती और शिक्षा  में किसी प्रकार का विरोध नहीं है  |

      घनश्याम जब कभी उन दिनों की याद करता है, जब गांव के व्यक्ति उसका विरोध और तिरस्कार करते थे तो उसे मन ही मन हंसी आती है  |  अच्छे और नए काम के लिए जो व्यक्ति प्रयास करता है उसका प्रारंभ में तो विरोध और तिरस्कार होता है, पर जब वह अपने मार्ग पर दृढ़ रहता है तो फिर कभी ना कभी दूसरे उसकी उपयोगिता समझ लेते हैं   |     अंत में अपने संकीर्ण स्वार्थ को त्याग कर लोकमंगल के पद पर बढ़ने का साहस करने वाले व्यक्तियों का प्रारंभ में भले ही विरोध हो, परंतु जब वे दृढ़तापूर्वक अपने मार्ग पर चलते रहते हैं तो धीरे-धीरे विशाल जनसमूह उसका अनुकरण करने में ही गौरव समानता है  |||   🙏🏽🙏🏽    


आशीष यादव 

कानपुर देहात 

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